Tuesday, April 28, 2015

प्रयास का लाभ


एक बालक ईश्‍वर  का परम भक्त था। एक रात उसने स्वप्न में देखा कि उसके कमरे में अचानक अत्यधिक प्रकाश फैल गया और स्वयं ईश्‍वर उसके सम्मुख खड़े हैं। ईश्‍वर ने कहा, ’तुम मेरे भक्त हो इसलिए मैं तुम्हें एक कार्य सौंप रहा हूं। सुबह अपने घर के बाहर तुम्हें एक बड़ी चट्टान नजर आएगी। तुम्हें उसे धकेलने का कार्य करना है।’वह बालक ईश्‍वर में दृढ़ विश्‍वास रखता था, इसलिए उसने सोच-विचार किए बिना उनके आदेश को माना। सुबह जब उठा तो उसने देखा कि उसके घर के बाहर वास्तव में एक बड़ी-सी चट्टान थी। वह पूजा-पाठ करने के बाद चट्टान को धकेलने में जुट गया। आते-जाते लोग उसे आश्‍चर्य से देख रहे थे और समझा रहे थे, ’चट्टान नहीं खिसकेगी, तुम व्यर्थ प्रयास मत करो।’ वह बालक प्रभु का आदेश मानकर नियमित यत्न करते हुए वर्षों तक इस कार्य में लगा रहा। इस दौरान उसका शरीर मजबूत हो गया, भुजाएं भी बलिष्ठ हो गईं लेकिन वह निराश होने लगा कि इतने प्रयासों के बावजूद चट्टान तो रत्ती भर भी नहीं खिसकी। उसे लगा कि अब उसे यह कार्य बंद कर देना चाहिए। वह पछता रहा था कि बेकार ही उसने स्वप्न की बात सच मान ली। संयोग से उसी रात उसे फिर ईश्‍वर के दर्शन हुए। बालक ने ईश्‍वर से पूछा कि उन्होंने उसे किस कार्य में लगा दिया है, चट्टान तो खिसक नहीं रही है। उसे इतने परिश्रम का क्या फल मिला? इस पर ईश्‍वर मुस्कराए और बोले, ’कोई भी कार्य कभी व्यर्थ नहीं होता। तुम यह क्यों नहीं देखते कि पहले तुम शारीरिक रूप से कमजोर थे, अब ताकतवर बन चुके हो। तुम्हारे जीवन से आलस्य जाता रहा और तुम परिश्रमी हो गए हो। हम अपने हर प्रयत्न से प्रत्यक्ष लाभ की कामना करने लगते हैं लेकिन हम भूल जाते हैं कि हरेक प्रयास में कई परोक्ष लाभ भी छिपे होते हैं।’

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