एक दिन एक व्यक्ति के घर के बाहर बरामदे में चार लोग आकर बैठे। ये चार लोग थे-प्रेम, वैभव, सफलता और नीति। घर में रहने वाले दंपती ने बाहर आकर उन्हें प्रणाम किया और परिचय पूछा। चारों ने बारी-बारी से अपना परिचय दिया। तब दंपती ने आदरपूर्वक उन्हें भीतर आने के लिए आमंत्रित किया। इस पर आगंतुक बोले, ’हम सब को एक साथ अंदर आने की क्या जरूरत है, आप किसी एक को बुला लें।’ दंपती असमंजस में पड़ गया, किसे बुलाएं, किसे छोड़ें। उन्होंने आगंतुकों से थोड़ा समय मांगा और आपस में सलाह करने के लिए वापस घर में आ गए। पूरा परिवार अंदर बैठकर सलाह करने लगा। स्त्री बोली, ’हमें वैभव को ही अंदर बुलाना चाहिए। उसके आने से बाकियों की कमी भी पूरी हो सकती है।’ लेकिन उसकी बात काट कर पति ने कहा, ’वैभव सफलता का मोहताज है। इसलिए सफलता को ही बुलाओ। उसके साथ होने से वैभव अपने आप साथ आ जाएगा।’ इस पर बेटे ने सलाह दी, ’नहीं पिताजी, आप सबसे पहले नीति को बुलाएं। जहां नीति होती है, वहीं सफलता मिलती है, और जहां सफलता मिलती है, वहां वैभव अपने आप आता है।’ इसके बाद सभी बहू की राय जानने के लिए उसकी ओर देखने लगे। वह धीरे से बोली, ’मेरी मानिए तो आप लोग सबसे पहले प्रेम को ही बुलाइए। बाकी सभी पात्र बाहरी जीवन के मददगार हैं, लेकिन घर-परिवार में सबसे बड़ा मित्र प्रेम ही होता है। प्रेम बना रहे तो अन्य आगंतुकों का साहचर्य किसी न किसी उद्यम से हासिल हो ही जाएगा।’ बहू की सलाह पर दंपती ने बाहर आकर प्रेम को निमंत्रित किया। आश्चर्य कि जब प्रेम भीतर आया तो उसके पीछे-पीछे बाकी तीनों भी आ गए। अंदर आकर वे बोले, ’आप ने हम तीनों में से किसी एक को बुलाया होता, तो हम अकेले ही आते। पर प्रेम जहां जाता है, वहां हम अवश्य साथ होते हैं।’
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