एक युवक शिक्षित व गुणवान था लेकिन वह बात-बात में लोगों से बड़े ही कड़वे शब्द बोलता था। अनेक बड़े-बूढ़े उसे हर तरह से समझा-समझा कर हार गए थे लेकिन उसमें कोई परिवर्तन नहीं आया। उस युवक का एक बहुत ही प्रिय मित्र था। मित्र भी युवक के कड़वे बोल से परिचित था।
वह युवक जब-तब अपने मित्र को भी छोटी-मोटी बात पर तीखा बोल देता था, किंतु मित्र उसकी बातों का बुरा नहीं मानता था क्योंकि वह जानता था कि युवक अंदर से होनहार और साफ मन का है। जब इस मित्र को अहसास हुआ कि युवक के कड़वे बोल के कारण अधिकतर लोग उसे घृणा की नजरों से देखने लगे हैं, तो उसने उसे सुधारने की सोची। इसके लिए मित्र ने युवक को अपने घर पर आमंत्रित किया। कुछ देर इधर-उधर की बातें करने के बाद उसने युवक को एक पेय पदार्थ दिया। यह अत्यंत मीठा था। इसे पीते ही युवक खुश हो गया और मित्र से बोला, ’वाह! इसे पीते ही मन आनंदित हो गया।’
थोड़ी देर बाद मित्र एक और पेय लेकर आया और बोला, ’यह एक खास चीज है। इसे पीकर देखो।’ एक घूंट पीते ही युवक का चेहरा विकृत हो गया। वह नाक-भौं सिकोड़ते हुए बोला, ’यह तो बहुत ही कड़वा है।’ युवक की इस बात पर मुस्कराता हुआ मित्र बोला, ’अच्छा, क्या तुम्हारी जुबान जानती है कि कड़वा क्या होता है?’ इस पर युवक बोला, ’कड़वी और खराब चीजें तो जुबान पर आते ही पता चल जाती है!’ मित्र ने कहा, ’नहीं, कड़वी चीजें जुबान पर आते ही पता नहीं चलतीं।
अगर ऐसा होता तो लोग अपनी जुबान से कड़वी बातें क्यों निकालते?’ यह सुनकर युवक लज्जित हो गया। मित्र ने समझाया, ’जो व्यक्ति कटु वचन बोलता है वह किसी व्यक्ति को दु:ख पहुंचाने से पहले अपनी जुबान को ऐसे ही गंदा करता है जैसे इस कड़वे पेय ने तुम्हारी जुबान को कड़वा कर दिया है।’
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