महात्मा गांधी उन दिनों स्कूल के छात्र थे। उनके स्कूल में खेलकूद अनिवार्य था और यदि कोई विद्यार्थी समय पर मैदान में उपस्थित नहीं होता, तो उसे जुर्माना देना पड़ता था। गांधीजी को खेलकूद में अधिक रुचि नहीं थी, फिर भी वह निर्धारित समय पर मैदान में पहुंच जाते थे। उन दिनों समय देखने के लिए घरों में घड़ियां कम ही होती थीं लेकिन, वह अंदाज से हमेशा समय पर ही पहुंचते। एक दिन गांधीजी अपने पिता की सेवा में लगे हुए थे। उस दिन आसमान में बादल छाए थे इसलिए समय का अंदाजा नहीं हो पा रहा था। जब वह स्कूल पहुंचे तो काफी देर हो चुकी थी। खेलकूद का समय निकल गया था। गांधीजी ने देखा कि मैदान खाली है तो वह अपनी कक्षा में लौट आए। अगले दिन जब अध्यापक को पता चला कि वह स्कूल आकर भी मैदान में नहीं पहुंचे थे, तो उन्होंने इस बारे में उनसे पूछा।
गांधीजी बोले, ’मैं तो आया था किंतु उस समय वहां पर कोई विद्यार्थी नहीं था।’ यह सुनकर अध्यापक बोले, ’तुम देर से क्यों आए? क्या तुम्हें समय का ज्ञान नहीं था?’ गांधीजी बोले, ’मेरे पास घड़ी नहीं थी और कल आसमान में बादल होने की वजह से सही समय का अंदाजा नहीं लग सका।’ अध्यापक को लगा कि गांधीजी झूठ बोल रहे हैं इसलिए उन्होंने उन पर दो आने का जुर्माना कर दिया। जुर्माने की बात सुनकर गांधीजी को रोना आ गया। वह इस बात से आहत थे कि उन्हें उनके शिक्षक ने गलत समझा। उन्होंने सोचा कि जब सच बोलने पर भी सजा मिल सकती है, तो गलती करने के साथ ही झूठ बोलने के दंड का तो अंदाजा ही नहीं लगाया जा सकता। यह सोच कर उन्होंने उसी समय निश्चय किया कि वह आजीवन सत्य बोलेंगे और साथ ही अपने अंदर ऐसा आत्मबल पैदा करेंगे कि उनके द्वारा बोले गए सत्य को सभी सत्य ही समझें, उसके झूठ होने का भ्रम न पालें।
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