Monday, April 27, 2015

पुरुषार्थ असली हीरा


रघुवीर नामक एक राजा बहुत ही ईमानदार, नेक दिल व कुशल शासक था। वह अपनी प्रजा की संतुष्टि के लिए हर संभव कोशिश करता था। वह  वेश बदलकर अपनी प्रजा के दु:ख-दर्द को समझता और उन्हें दूर करने का प्रयास करता। एक दिन वह ऐसे ही वेश बदलकर घूम रहा था। घूमता-घूमता वह घने जंगल तक पहुंच गया। जंगल में उसने देखा कि एक बूढ़ा लकड़हारा पसीने से लथपथ होकर लकड़ियां काट रहा है। तभी उसकी नजर लकड़हारे के पास एक चट्टान से फूटती तेज रोशनी पर पड़ी। राजा की उत्सुकता जगी। वह रोशनी के करीब पहुंचा। वहां पहुंच कर वह दंग रह गया। उसने देखा कि जहां से रोशनी फूट रही थी वहां बेशुमार हीरे दबे हुए थे लेकिन लकड़हारे को उनसे कोई मतलब नहीं था। वह उनसे बेखबर अपने काम में लगा हुआ था। राजा लकड़हारे के पास जाकर बोला, ’बाबा, आपके नजदीक ही एक चट्टान में असंख्य हीरे धंसे पड़े हैं और उनकी रोशनी यहां तक पहुंच रही है। क्या आपको उन हीरों की जानकारी नहीं है? यदि आप इनमें से एक हीरा भी निकालकर बेच दें तो आप आजीवन बिना मेहनत किए अच्छे से अच्छा खा-पीकर अपना जीवन गुजार सकते हैं।’

राजा की बात पर लकड़हारे ने विनम्रतापूर्वक कहा, ’बेटा, ये हीरे मैं बरसों से यहां देख रहा हूं। जब ईश्‍वर ने मुझे हाथ-पैर रूपी सजीव हीरे दिए हैं तो मैं बिना मेहनत किए इन बेजान हीरों की मदद से अपना जीवनयापन क्यों करूं? इन हीरों से मैं आलसी हो जाऊंगा और मेरे हाथ-पैर बेकार हो जाएंगे। मुझे कई बीमारियां घेर लेंगी। ऐसे में लाखों बेजान हीरे भी मेरी बीमारी को दूर नहीं कर पाएंगे। बीमारियों को दूर भगाने का सबसे सरल व उत्तम तरीका कड़ी मेहनत है। पुरुषार्थ ही मनुष्य को स्वास्थ्य, खुशी व लंबी आयु प्रदान करता है। वास्तव में पुरुषार्थ ही असली हीरा है।’ 

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