एक बार कुछ अंग्रेज पादरी एक पत्रकार को अपने साथ लेकर महर्षि रमण के पास पहुंचे। उन्होंने महर्षि से कहा, ’कहा जाता है कि आप घंटों ईश्वर का साक्षात्कार करते हैं। आज हम सभी इस बात को स्वयं देखने आए हैं कि आप ईश्वर से कैसे मिलते हैं?
यदि आपकी ईश्वर से साक्षात्कार की बात निराधार हुई तो यह पत्रकार आपके चमत्कार का भंडाफोड़ कर देगा।’ उनकी बात सुनकर रमण महर्षि मुस्कराए और बोले, ’आप सबेरे मेरे साथ चलकर स्वयं भी ईश्वर का साक्षात्कार कर सकते हैं।’ पादरी व पत्रकार रमण महर्षि को इतनी सरलता से यह कहते देख हैरान रह गए। वह सुबह उनके पास आने की बात कहकर लौट गए। रात भर उनमें से किसी को भी नींद नहीं आई और वे पूरी रात आपस में यही विचार-विमर्श करते रहे कि महर्षि कैसे उनका साक्षात्कार ईश्वर से कराएंगे? अगले दिन सबेरा होते ही वे रमण महर्षि के आश्रम में पहुंच गए।
महर्षि पूजा-अर्चना के बाद पादरियों को साथ लेकर जंगल की ओर चल दिए। जंगल में वह नदी किनारे स्थित एक झोपड़ी में पहुंचे। वहां लेटे हुए एक कुष्ठ रोगी को उन्होंने प्रेम से उठाया। उसके शरीर पर औषधि युक्त तेल की मालिश की। मालिश के बाद उसे नहलाया, उसके कपड़े बदले। चूल्हा जलाकर उसके लिए दलिया बनाया। उसके बाद बड़े प्रेम से उसे अपने हाथों से दलिया खिलाया। फिर उन्होंने पास ही चटाई पर बैठे पादरियों व पत्रकार से कहा, ’मैं इस तरह प्रतिदिन ईश्वर की पूजा करता हूं। उससे बातें करता हूं।
क्या आपको लगता है कि मैं कोई पाखंड करता हूं?’ पादरी तथा पत्रकार रमण महर्षि के चरणों में गिर गए। पत्रकार ने इंग्लैंड से प्रकाशित एक समाचार पत्र में अपने संस्मरण में लिखा, ’उस दिन हम सबको यह लगा कि हम ईसा-मसीह के साक्षात दर्शन कर रहे हैं।’
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