Tuesday, April 21, 2015

संस्कृति की समझ


एक बार स्वामी विवेकानंद अमेरिका के एक विश्‍वविद्यालय में व्याख्यान दे रहे थे। उसमें बड़ी संख्या में छात्र, अध्यापक और विभिन्न विषयों के विद्वान मौजूद थे, जो बड़ी उत्सुकता से स्वामी जी को सुन रहे थे। उनके भाषण का मुख्य विषय था ‘भारतीय संस्कृति तथा आध्यात्म का रहस्य’। स्वामी जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति तथा धर्म के सभी तत्वों का वैज्ञानिक महत्व है, इसलिए संस्कृति तथा आध्यात्म को वैज्ञानिकता से जोड़ कर देखा जाता है। यह सुनकर एक अमेरिकी दखल देते हुए बीच में उठकर बोला, ’वास्तव में आपकी संस्कृति महान है तभी तो आपके यहां देवी लक्ष्मी का वाहन उल्लू बताया गया है, जिसे दिन में दिखाई भी नहीं देता। अब जरा बताइए कि उल्लू को देवी लक्ष्मी का वाहन बताने के पीछे क्या वैज्ञानिक तर्क है?’उस व्यक्ति का प्रश्‍न सुनकर स्वामी जी अत्यंत सहजतापूर्वक बोले, ’पश्‍चिमी देशों की तरह भारत में धन को ही सब कुछ नहीं माना जाता। हमारे ऋषि-मुनियों ने चेतावनी दी है कि लक्ष्मी रूपी धन के असीमित मात्रा में पास आते ही मनुष्य आंखें होते हुए भी उल्लू की तरह अंधा हो जाता है। इसी का संकेत देने के लिए लक्ष्मी का वाहन ’उल्लू’ बताया गया है और इसके पीछे यही वैज्ञानिक तर्क है।’ स्वामी जी के इस जवाब पर सभी वाह-वाह कर उठे। इसके बाद स्वामी जी फिर बोले, ’सरस्वती ज्ञान और विज्ञान की प्रतीक है। यह मानव का विवेक जागृत करने वाली देवी है इसलिए सरस्वती का वाहन हंस बताया गया है, जो नीर-क्षीर विवेक का प्रतीक है। अब आप यह भली-भांति समझ गए होंगे कि संस्कृति व धर्म के सभी तत्वों के पीछे वैज्ञानिक तर्क छिपे हुए हैं।’ वहां उपस्थित सभी लोगों के साथ ही वह व्यक्ति भी देवी-देवताओं के वाहनों की यह अवधारणा सुनकर स्वामी जी के प्रति नत-मस्तक हो गया और उस दिन से भारतीय संस्कृति का प्रशंसक बन गया। 

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