गुरुनानक प्रतिदिन सायंकाल को भ्रमण किया करते थे। मार्ग में जो भी मिलता, उसके हालचाल पूछना और उसकी यदि कोई समस्या हो तो उसका समाधान सुझाना उनकी दिनचर्या का अहम हिस्सा था। एक दिन वे यमुना किनारे टहल रहे थे, तभी उन्हें किसी व्यक्ति के जोर-जोर से रोने की आवाज आई। उन्होंने निकट जाकर देखा तो पाया कि एक हाथी बेसुध पड़ा था और उसका महावत रोते हुए ईश्वर से हाथी को पुन: जीवित करने की प्रार्थना कर रहा था। उन्होंने महावत से रोने का कारण पूछा तो वह बोला- मेरा हाथी अचानक चलते-चलते गिर पड़ा। मैंने इसे कितना ही पुकारा और हिलाया-डुलाया, किंतु यह उठता ही नहीं है। तब गुरुनानक बोले- तुम हाथी के सिर पर पानी डालो, यह ठीक हो जाएगा। महावत ने ऐसा ही किया। कुछ ही देर बाद हाथी को होश आ गया और वह उठ बैठा। महावत ने तत्काल गुरुनानक के चरण पकड़ते हुए कहा- महाराज आपकी कृपा से मेरा हाथी जिंदा हो गया। गुरुनानक बोले- हाथी मरा नहीं था। वह दिमाग में गर्मी चढ़ जाने से मूर्च्छित हो गया था। तुमने उसके सिर पर पानी डाला तो उसे होश आ गया क्योंकि पानी की ठंडक से दिमाग की गर्मी दूर हो गई। इसमें मेरी कोई कृपा या चमत्कार नहीं है। हर व्यक्ति को पहले समस्या का कारण जानना चाहिए, फिर उसके निदान का प्रयास करना चाहिए। कारण जाने बिना समस्या का निदान नहीं हो सकता। अत: खूब सोच-विचारकर कार्य करें और किसी चमत्कार के चक्कर में नहीं पड़ें।
No comments:
Post a Comment