जॉर्ज बर्नार्ड शॉ अपने समय के सुविख्यात साहित्यकार थे। प्रसिद्धि के शीर्ष पर होने के बावजूद उनमें जरा भी अहंकार नहीं था और उनका रहन-सहन भी अति साधारण था। अपने ऐसे सरल स्वभाव की वजह से वे जनता के बीच काफी लोकप्रिय थे और प्राय: प्रत्येक वर्ग के लोग उनसे मिलने आया करते थे।
ऐसे ही एक दिन एक व्यक्ति जॉर्ज को अपने यहां भोज में आमंत्रित करने के लिए आया॥ जॉर्ज ने उसका आमंत्रण तो स्वीकार कर लिया, साथ ही उससे कहा कि वे शाकाहारी हैं और यदि वह उनके लिए शाकाहार की व्यवस्था कर सके, तो ही वे उसके घर भोजन पर आ सकते हैं। उस शख्स ने उनकी बात स्वीकार कर ली। अगले दिन जॉर्ज उसके घर भोजन करने गए। जॉर्ज शाकाहारी भोजन की मेज की ओर गए और मेज पर रखे सलाद को स्वाद लेकर खाने लगे। तभी मांसाहार का स्वाद ले रहा व्यक्ति उनकी ओर देखकर हंसने लगा। शॉ ने संकेत से हंसने का कारण पूछा तो वह बोल- जनाब, मुर्गा खाइए मुर्गा। ये घासफूस क्यों चर रहे हैं? शॉ ने भी मुस्कराते हुए तत्काल उत्तर दिया - भाई साहब, यह मेरा पेट है, कोई कब्रिस्तान नहीं, जो मैं इसमें मरी हुई चीजें दफन करता फिरूं। यह सुनकर वह व्यक्ति शर्म से पानी-पानी हो गया। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ के जीवन का यह प्रसंग संकेत करता है कि कई बार गलत बातों का प्रतिकार विवाद से करने के स्थान पर हाजिरजवाबी से भी किया जा सकता है। इससे अनावश्यक तनाव भी पैदा नहीं होता और संबंधित शख्स के लिए कहने या करने को कुछ शेष भी नहीं रह जाता।
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