Friday, October 18, 2019

त्याग से संकट कटे


जब मेघनाद के शक्ति बाण से लक्ष्मण मूर्छित हो गए, तो विभीषण की राय पर हनुमान सुषेन वैद्य को ले आए। वैद्य जी ने हिमालय से संजीवनी बूटी लाने की सलाह दी। उन्होंने शर्त रखी कि अगर सूर्योदय से पहले लक्ष्मण को संजीवनी नहीं पिलाई गई तो वह जिंदा नहीं बचेंगे। यह काम हनुमान को सौंपा गया। जब हनुमान पूरे धवल गिरि को उठाए अयोध्या से गुजर रहे थे, तो उन पर भरत की दृष्टि पड़ गई। भरत ने सोचा कि राम की अनुपस्थिति में कोई राक्षस अनिष्ट करने की मंशा से राज्य के ऊपर मंडरा रहा है। उन्होंने धनुष-बाण उठाया और हनुमान पर निशाना साध दिया। बाण लगते ही हनुमान धरती पर आ गिरे और कुछ क्षणों के लिए अचेत हो गए। हनुमान को देखकर भरत को बहुत ग्लानि हुई। उनका कुशल क्षेम पूछने के बाद भरत ने कहा,’ आपको सूर्योदय से पहले लंका पहुंचना है और दूरी बहुत ज्यादा है। मेरे बाण पर बैठ जाइए, इससे आप तुरंत ही श्रीराम के पास पहुंच जाएंगे।’ हनुमान ने कहा, ’राम का नाम लेने में जितनी देर लगती है, उतने ही समय में मैं लंका पहुंच जाऊंगा।’ 

इस बीच सभी रानियां भी आ गईं। दुखद समाचार सुनने के बाद कौशल्या ने राम को संदेश भेजा कि अगर लक्ष्मण जीवित न बचा तो तुम कभी अयोध्या मत आना। इसके बाद कैकेयी ने कहा, ’राम! वन में भटकते-भटकते बहुत दिन बीत गए हैं। अब तुम अयोध्या लौट आओ, अब मैं भरत को तुम्हारी जगह युद्ध के लिए भेज रही हूं।’ सुमित्रा से रहा नहीं गया। वह बोलीं, ’लक्ष्मण के प्राण नहीं बचे तो कोई बात नहीं। तुम चिंता मत करना। उसका एक भाई शत्रुघ्न है, जल्दी से स्थिति के बारे में बताओ ताकि मैं तुम्हारी सेवा में उसे भेज सकूं।’ उनकी बातें सुनकर हनुमान ने सोचा कि जहां एक-दूसरे के लिए त्याग की ऐसी भावना हो, वहां सभी संकट स्वत: कट जाएंगे। 

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