Sunday, June 5, 2022

खजाने की खोज



एक गांव में एक रामलाल नाम का एक किसान अपनी पत्नी और चार लड़को के साथ रहता था। रामलाल खेतों में मेहनत करके अपने परिवार का पेट पालता था। लेकिन उसके चारो लड़के आलसी थे। जो गांव में वैसे ही इधर उधर घूमते रहते थे। एक दिन रामलाल ने अपनी पत्नी से कहा की अभी तो मै खेतों में काम कर रहा हूँ। लेकिन मेरे बाद इन लड़को का क्या होगा। इन्होने तो कभी मेहनत भी नहीं करी। ये तो कभी खेत में भी नहीं गए। रामलाल की पत्नी ने कहा की धीरे धीरे ये भी काम करने लगेंगे। समय बीतता गया और रामलाल के लड़के कोई काम नहीं करते थे। एक बार रामलाल बहुत बीमार पड़ गया। वह काफी दिनों तक बीमार ही रहा।

उसने अपनी पत्नी को कहा की वह चारों लड़को को बुला कर लाये। उसकी पत्नी चारों लड़को को बुलाकर लायी। रामलाल ने कहा लगता है की अब मै ज्यादा दिनों तक जिन्दा नहीं रहूँगा। रामलाल को चिंता थी की उसके जाने के बाद उसके बेटों का क्या होगा। इसलिए उसने कहा बेटों मैने अपने जीवन में जो भी कुछ कमाया है वह खजाना अपने खेतों के निचे दबा रखा है। मेरे बाद तुम उसमे से खजाना निकालकर आपस में बॉंट लेना। यह बात सुनकर चारों लड़के खुश हो गए।

कुछ समय बाद रामलाल की मृत्यु हो गयी। रामलाल की मृत्यु के कुछ दिनों बाद उसके लड़के खेत में दबा खजाना निकालने गए। उन्होंने सुबह से लेकर शाम तक सारा खेत खोद दिया। लेकिन उनको कोई भी खजाना नज़र नहीं आया। लड़के घर आकर अपनी मॉं से बोले मॉं पिताजी ने हमसे झूठ बोला था। उस खेत में हमें कोई खजाना नहीं मिला। उसकी मॉं ने बताया की तुम्हारे पिताजी ने जीवन में यही घर और खेत ही कमाया है। लेकिन अब तुमने खेत खोद ही दिया है तो उसमे बीज बो दो।

इसके बाद लड़को ने बीज बोये और मॉं के कहेनुसार उसमे पानी देते गए। कुछ समय बाद फसल पक कर तैयार हो गयी। जिसको बेचकर लड़कों को अच्छा मुनाफा हुआ। जिसे लेकर वह अपनी मॉं के पास पहुंचे। मॉं ने कहा की तुम्हारी मेहनत ही असली खजाना है यही तुम्हारे पिताजी तुमको समझाना चाहते थे।

सीख

हमें आलस्य को त्यागकर मेहनत करना चाहिए। मेहनत ही इंसान की असली दौलत है।

Saturday, May 28, 2022

चतुर सियार



क बार की बात है एक गांव में एक बैल रहता था। जिसको घूमना बहुत पसंद था। वह घूमता घूमता जंगल में जा पहुंचा और आते समय गांव का रास्ता भूल गया। वह चलता हुआ एक तालाब के पास पहुंचा। जहॉं पर उसने पानी पिया और वहॉं की हरी हरी घास खायी। जिसको खाकर वह बहुत खुश हुआ और ऊपर मुँह करके चिल्लाने लगा। उसी समय जंगल का राजा शेर तालाब की ओर पानी पिने जा रहा था। जब शेर ने बैल की भयानक आवाज़ सुनी तो उसने सोचा जरूर जंगल में कोई खतरनाक जानवर आ गया है। इसलिए शेर बिना पानी पिए ही अपनी गुफा की तरफ भागने लगा। शेर को इस तरह डर कर भागते हुए 2 सियार ने देख लिया। वह शेर के मंत्री बनना चाहते थे। उनने सोचा यही सही समय है शेर का भरोसा जितने का। दोनों सियार शेर की गुफा में गए और बोले हमने आपको डर कर गुफा की ओर आते हुए देखा था। आप जिस आवाज़ से डर रहे थे वह एक बैल की थी।

यदि आप चाहे तो हम उसको लेकर आपके पास आ सकते है। शेर की आज्ञा से दोनों बैल को अपने साथ लेकर आ गए और शेर से मिलाया। कुछ समय बाद शेर और बैल बहुत ही अच्छे मित्र बन गए। शेर ने बैल को अपना सलाहकार रख लिया। यह बात जानकर दोनों सियार उनकी दोस्ती से जलने लगे क्योकि उनने जो मंत्री बनने का सोचा था वह भी नहीं हुआ। दोनों सियार ने तरकीब निकाली और शेर के पास गए। वह शेर से बोले बैल आपसे केवल मित्रता का दिखावा करता है। लेकिन हमने उसके मुँह से सुना है वह आपको अपने दोनों बड़े सींगो से मारकर जंगल का राजा बनना चाहता है। पहले तो शेर ने विश्वास नहीं किया लेकिन उसको ऐसा लगने लगा।

दोनों सियार इसके बाद बैल के पास गए। वह बैल से बोले शेर तुमसे केवल मित्रता का दिखावा करता है। मौका मिलने पर वह तुमको मार कर खा जायेगा। बैल को यह जानकर बहुत गुस्सा आया और वह शेर से मिलने के लिए जाने लगा। सियार पहले ही शेर के पास जाकर बोले की बैल आपको मारने के लिए आ रहा है। बैल को गुस्से में आता देख शेर ने सियार की बात सच समझी और बैल पर हमला कर दिया। बैल ने भी शेर पर हमला किया और दोनों आपस में लड़ने लगे। अंत में शेर ने बैल को मार दिया और दोनों सियारों को अपना मंत्री बना लिया।

सीख 

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है की हमें कभी भी दूसरों के कहने पर अपनी मित्रता पर शक नहीं करना चाहिए। अच्छे मित्र बड़ी मुश्किल से मिलते है।

Tuesday, May 24, 2022

श्रीराम का न्याय



क दिन एक कुत्ता श्रीराम (Shriram) के दरबार में आया और उसने प्रभु से शिकायत की , ‘राजन, कितने दु:ख की बात है कि जिस राज्य की कीर्ति चहुंओर फैली है वहीं लोग हिंसा और अन्याय का सहारा लेते हैं। मैं आपके महल के पास ही एक गली में लेटा हुआ था। एक साधु आया और उसने मुझे पत्थर मारकर घायल कर दिया। देखिए मेरे सिर पर पत्थर से बने घाव से अभी भी रक्त बह रहा है। वह साधु अभी भी गली में ही होगा। कृपया मेरे साथ न्याय कीजिए और अन्यायी को उसके दुष्कर्म का दंड दीजिए।’

श्रीराम के आदेश पर साधु को दरबार में लिवा लाया गया। साधू ने अपना बचाव करते हुए कहा, ‘यह कुत्ता गली में पूरा मार्ग रोककर लेटा हुआ था। मैंने इसे उठाने के लिए आवाजें दीं और ताली बजाई लेकिन यह नहीं उठा। मुझे गली के पार जाना था इसलिए मैंने इसे एक पत्थर मारकर भगा दिया।’

श्रीराम ने साधु से कहा, ‘एक साधु होने के नाते तो तुम्हें किंचित भी हिंसा नहीं करनी चाहिए थी। तुमने गंभीर अपराध किया है और इसके लिए दंड के भागी हो।‘ श्रीराम ने साधु को उसके अपराध की सजा देने के विषय पर दरबारियों से चर्चा की। दरबारियों ने एकमत होकर निर्णय लिया कि इस बुद्धिमान कुत्ते ने यह वाद प्रस्तुत किया है तो सजा के विषय पर भी इसका मत ले लिया जाए।

कुत्ते ने कहा, ‘राजन, इस नगरी से पचास योजन दूर एक अत्यंत समृद्ध और संपन्न मठ है जिसके महंत की दो वर्ष पूर्व मृत्यु हो चुकी है। कृपया इस साधु को उस मठ का महंत नियुक्त कर दें।’

श्रीराम और सभी दरबारियों को ऐसा विचित्र दंड सुनकर बड़ी हैरानी हुई। उन्होंने कुत्ते से ऐसा दंड सुनाने का कारण पूछा। कुत्ते ने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहा, ‘मैं ही दो वर्ष पूर्व उस मठ का महंत था। ऐसा कोई सुख, प्रमाद, या दुर्गुण नहीं है जो मैंने वहां रहते हुए नहीं भोगा हो। इसी कारण इस जन्म में मैं कुत्ता बनकर पैदा हुआ हूं। अब शायद आप मेरे दंड का भेद जान गए होंगे।’

बंदर की क्रान्ति



प्रकृति विज्ञानियों ने जापान (Japan) के मैकॉक बंदरों (macaque monkey) का उनके प्राकृतिक परिवेश में कई तक अध्ययन किया। जापान के कोशिमा द्वीप (Koshima Island) पर प्रकृति विज्ञानियों ने बंदरों को खाने के लिए शकरकंद (Sweet potato) दिए जो रेत में गिर जाते थे। बंदरों को शकरकंद का स्वाद भा गया लेकिन रेत के कारण उनके मुंह में किरकिरी हो जाती थी।

‘माह की इमो’ नामक एक मादा बंदर ने इस समस्या का हल शकरकंद को समीप बहती स्वच्छ जलधारा में धोकर निकाल लिया। उसने यह तरकीब अपनी मां को भी सिखा दी। देखते-ही-देखते बहुत सारे बच्चे बंदर और उनकी मांएं पानी में धोकर शकरकंद खाने लगे। सभी वयस्क बंदर 10 से 12 माह में शकरकंद को पानी में धोकर खाने लायक बनाना सीख गए। तभी एक अनूठी घटना हुई। कोशिमा द्वीप के बहुत सारे बंदर वसंत महीने में शकरकंद को धोकर खा रहे थे। उनकी निश्‍चित संख्या का पता नहीं है। मान लें कि एक सुबह वहां 10 बंदर थे जिन्हें पानी में शकरकंद धोकर खाना आ गया था। अब यह भी मान लें कि अगली सुबह 11 वें बंदर ने भी पानी में धोकर शकरकंद खाना सीख लिया। इसके बाद तो चमत्कार हो गया। उस शाम तक द्वीप के सभी बंदर पानी में धोकर फल खाने लगे। उस 11 वें बंदर द्वारा उठाए गए कदम ने एक वैचारिक क्रांति को जन्म दे दिया था। यह चमत्कार यहीं पर नहीं रुका। समुद्र को लांघकर दूसरे द्वीपों तक जा पहुंचा। ताकासकियामा द्वीप के सारे बंदर अपने फल पानी में धोकर खाते देखे गए। अन्य द्वीपों के बंदर भी अपने फल धोकर खाने लगे।

इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि जब एक समूह के सदस्यों में निश्‍चित संख्या में जागरूकता आ जाती है तो वह जागरूकता चेतना के रहस्यमयी मानसिक स्तर पर फैल जाती है।

Sunday, May 8, 2022

तीन बकरे


सालों पहले चंदेरी जंगल में तीन बकरे रहते थे। तीनों भाई थे, जो हमेशा मिलजुलकर घास खाते थे। एक बड़े से मैदान में वो रोज जाते और भरपेट खाकर खुशी-खुशी साथ रहते थे। धीरे-धीरे उस जगह की घास खत्म होने लगी, तो उनमें से सबसे बड़े बकरे ने कहा कि अब हमें यह जगह छोड़नी होगी। यहां खाने के लिए अब कुछ भी नहीं बचा है। तब सबसे छोटे बकरे ने कहा कि नदी के दूसरी ओर ऐसी जगह है, जहां चारों ओर घास ही घास है। अगर हम वहां चले जाएं, तो आराम से पूरी जिंदगी गुजार सकते हैं।

तभी बीच वाला बकरा बोला कि बात तो सही है, लेकिन हम नदी पार नहीं कर पाएंगे। नदी के बीच में बने पुल के नीचे एक राक्षस रहता है। वो वहां से गुजरने वाले हर किसी को खा जाता है। तब सबसे बड़े बकरे ने कहा कि मेरे पास एक तरकीब है, जिससे हम उस राक्षस को मार सकते हैं। उसने अपने दोनों भाई के कान में कुछ कहा और सभी खुशी-खुशी नदी की ओर जाने लगे।

पुल के पास पहुंचते ही सभी बकरे एक पेड़ के पीछे छुप गए। तभी बड़े बकरे ने सबसे छोटे बकरे को इशारा करके पुल पार करने को कहा। जैसे ही वह छोटा बकरा पुल पार करने लगा, तो वहां राक्षस आ गया। राक्षस बोला, तुम्हारी यहां आने की हिम्मत कैसे हुई? अब मैं तुमको खा जाऊंगा।

तभी बकरा कहता है कि राक्षस महाराज, मैं तो बहुत छोटा हूं। मुझे खाने से आपका पेट भी नहीं भर पाएगा। आप एक काम कीजिए, पीछे मेरा बड़ा भाई आ रहा है। वो बहुत मोटा है आप उसको खाकर अपनी भूख मिटा लो। राक्षस को छोटे बकरे के मुंह से महाराज शब्द सुनकर अच्छा लगा। खुश होते हुए राक्षस ने कहा, ठीक है तुम बहुत छोटे हो, मैं तुम्हारे बड़े भाई को खा लूंगा।

छोटा बकरा वहां से चला गया। इसके बाद बड़े बकरे ने दूसरे बकरे को इशारा किया। फिर वो भी पेड़ के पीछे से निकल कर पुल पार करने लगा। वहां राक्षस पहले से ही उसका इंतजार कर रहा था। बकरे को देखकर राक्षस खुश हुआ और उससे कहा कि मैं तुमको खा जाऊंगा। तभी बकरे ने घबराकर कहा, हे राजाधिराज, मुझे खाकर आपको क्या मिलेगा? मैं तो आपके नाश्ते के बाराबर भी नहीं हूं। आप थोड़ा और इंतजार करें, तो आपको ऐसी दावत मिलेगी कि आप कभी नहीं भूलेंगे।

राक्षस ने उसकी बात सुनकर पूछा, कैसे? तब बकरे ने कहा कि पीछे से मेरा बड़ा भाई आ रहा है। वो मेरे जैसे दस बकरों के बराबर है। आप उसे कई दिनों तक आराम से खा सकते हैं। राक्षस ने उसके मुंह से राजाधिराज और मोटा बकरा खाने की बात सुनकर उसे पुल पार करने की इजाजत दे दी।

आखिर में सबसे बड़ा बकरा पुल के ऊपर चढ़ा और उसे पार करने लगा। तभी उसके सामने राक्षस आ गया और जोर-जोर से हंसने लगा। हंसने के बाद राक्षस ने कहा कि आज तो मजा ही आ गया। तुम बहुत मोटे हो, तुम्हें खाकर मैं अपनी भूख मिटाऊंगा।

राक्षस की बात सुनकर बकरा कुछ कदम पीछे गया और तेजी से दौड़ता हुआ राक्षस के सीने पर अपने सींग मार दिए। अचानक हुए वार से राक्षस संभल नहीं पाया और पानी में गिर गया। गिरते ही वह नदी के तेज बहाव में बहता हुआ दूर निकल गया। इसके बाद तीनों बकरे आराम से अपनी जिंदगी नई जगह में घास खाते हुए गुजारने लगे।

Saturday, May 7, 2022

नींद


हुत सारे लोगों की हालत ऐसी है कि अगर उन्होंने अपने आप को बहुत कुछ करके तैयार न किया हो तो वे, एक घंटे के लिए ध्यान में बैठने पर मुश्किल से तीन मिनट ही ध्यान की अवस्था में रह पाते हैं। बार- बार, बार-बार, वे एक क्षण उसमें होते हैं और फिर कहीं और पहुंच जाते हैं। अपनी नींद में ध्यान कैसे किया जाए, यह सोचने की बजाय, आप का ध्यान करने का समय चाहे जितना भी हो, उसकी गुणवत्ता को बढ़ाना बेहतर है। कम से कम अपनी नींद को तो अपने सोचने से मत बिगाड़िए। बस, अच्छी तरह से सोइए, जैसे कि कहते हैं, ‘लकड़ी के कुंदे (टुकड़े) की तरह सोइए’। अगर आप इस तरह नहीं सो सकते तो एक बिल्ली या कुत्ते की तरह सोइए। आध्यात्मिकता को अपनी नींद में लाने की कोशिश मत कीजिए। बस ऐसे सोइए, जैसे कि आप मर गए हों। मरे हुए लोगों के शरीर कड़े हो जाते हैं पर वे सब कुछ भरपूर होने की गहरी अवस्था में होते हैं। उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं होती कि वे कैसे दिख रहे हैं?

तो, इसी तरह से, जब आप सो रहे हों तो आप को इस बात की चिंता नहीं होनी चाहिए कि आप के साथ क्या हो रहा है? मैंने अमेरिका में एक बात देखी कि सुबह जब आप लोगों से मिलते हैं, तो बहुत से लोग पूछते हैं, ‘क्या आप अच्छी तरह से सोये थे’? मुझे यह प्रश्न समझ नहीं आता था क्योंकि यह कोई मुद्दा ही नहीं था। पर अब मैं देखता हूं कि बहुत से लोगों के लिए नींद एक मुद्दा होती है। अगर आप अपनी नींद में ध्यान करने की कोशिश करेंगे तो नींद जरूर ही आपके लिए एक मुद्दा हो जाएगी। तो अपनी नींद को पूरी तरह से, भरपूर होने दीजिए।

अगर आप एक मरे हुए आदमी की तरह सोना नहीं चाहते तो एक छोटे से शिशु की तरह सोइए। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन उम्मीदवार जॉन मैकान ने इस बारे में एक सुंदर बात कही। ओबामा के खिलाफ चुनाव हारने के बाद जब लोगों ने उनसे पूछा, ‘आप कैसे हैं’? तो वे बोले, ‘मैं एक छोटे से शिशु की तरह सो रहा हूं। हर दो घंटे में उठता हूं, रोता हूं और फिर सो जाता हूं’। यह उस आदमी के लिए बहुत ही अद्भुत बात थी। अगर हारने पर भी आप हंसी-मजाक कर सकते हैं, तो एक छोटे शिशु की तरह सो सकते हैं।

ज्ञान से हुई मोक्ष की प्राप्ति


एक दिन गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ कुटिया में बैठे थे। सभी शिष्य आज जानना चाहते थे कि मोक्ष कैसे प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए उन्होंने बुद्ध जी से निवेदन किया कि वो आज मोक्ष पर उपदेश दें। शिष्यों की बात मान कर बुद्ध जी ने एक कहानी सुनाना शुरू किया। यह कहानी थी एक जल्लाद और भिक्षुक की।

अपने राज्य का मुख्य जल्लाद, जिसने बहुत से गुनाहगारों को दंड दिया था। अब वह रिटायर हो कर राज्य से बाहर एक कुटिया बना कर अपना जीवन व्यतीत कर रहा था। उसे हमेशा लगता था कि उसने कितने लोगों की हत्या की है, वह कितना पापी है, ऐसे ख्यालों से वह हमेशा घिरा रहता था। वह अपना सारा दिन पश्चाताप में ही गुजारता था।

एक दिन वह रोज की तरह इन्हीं खयालों में खोया हुआ, खाना खाने के लिए थाली परोस रहा था। तभी उसको दरवाजे से किसी की आवाज आई। उसने बाहर जा कर देखा तो एक भिक्षुक खड़ा था। भिक्षुक के चेहरे को देख कर ही जल्लाद समझ गया कि भिक्षुक बहुत ही लम्बी साधना के बाद आज उठा है और भूख से व्यकुल भी है।

 जल्लाद के मन में आया की जिंदगी भर तो मैंने बस हत्याएं ही की हैं, आज मौका मिला है कुछ पुण्य कमाने का तो इसे गंवाना नहीं चाहिए। उसने भिक्षुक को अन्दर बुलाया और अपनी खाने की थाली उसे दे दी। भिक्षुक खाना देख कर बहुत प्रसन्न हुए। भर पेट भोजन कर के भिक्षुक ने जल्लाद से बातचीत शुरू की।

जल्लाद ने भिक्षुक को अपने जीवन की सारी कहानी सुनाई। उसने बताया कि वह कैसा काम करता था, उसने कितने लोगों को फांसी दी और वह सोचता है कि वह कितना बड़ा अपराधी है। जल्लाद की वेदना सुन कर भिक्षुक बहुत ही शांत स्वर में बोले कि क्या तुमने वो जीव हत्याएं अपनी मर्जी से की थी?

जल्लाद ने कहा, नहीं मैं तो बस मेरे राजा की आज्ञा का पालन कर रहा था। मेरा कोई भाव नही था उन्हें मृत्युदंड या सजा देने का। तब भिक्षुक ने कहा, तब तुम अपराधी कैसे हुए। तुम तो अपने राजा के आदेशों का पालन कर रहे थे।

जल्लाद को एहसास हुआ कि वह किसी गलत काम के लिए जिम्मेदार नहीं था उसका कोई दोष नहीं है, वह तो सिर्फ अपना दायित्व पूरा कर रहा था। इस प्रकार जल्लाद का मन शांत हुआ फिर भिक्षुक ने जल्लाद को उपदेश दिया और उस से विदा ले ली। भिक्षुक को विदा कर के जब जल्लाद वापस घर में आया, उसकी मृत्यु हो गयी। जिसके बाद उसको मोक्ष प्राप्त हुआ।

इतना कह कर बुद्ध जी ने कहानी को विराम दिया। सभी शिष्य बहुत ही आश्चर्य के साथ बुद्ध जी की ओर देख रहे थे। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि जिसने इतनी हत्याएं की हो उसे मोक्ष कैसे प्राप्त हो सकता है। तब एक शिष्य ने यह दुविधा बुद्ध जी के सामने रखी। बुद्ध जी ने तब शिष्यों को समझाया की भिक्षुक के उपदेश से जल्लाद को ज्ञान प्राप्त हो गया था। जल्लाद के जीवन में पहली बार किसी ने उसे ज्ञान का उपदेश दिया था। इसलिए मृत्यु के बाद उसे मोक्ष प्राप्त हुआ।

अपनी बात को विराम देते हुए अंत में बुद्ध जी बोले, बिना ज्ञान के हजार शब्दों का उपदेश भी बेकार है, किन्तु जब शांत मन से उपदेश का एक शब्द भी सुन लिया जाए तो वह ज्ञान दे देता है। और ज्ञान से ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है।

कहानी से सीख

इस कहानी ने हमे सिखाया की अपने कर्तव्यों का पालन बिना किसी दुर्भाव के पूरी निष्ठा के साथ करना चाहिए। साथ ही अपना मन हमेशा शांत रखना चाहिए। क्योंकि शांत मन से उपदेश सुनने पर ही वास्तविक ज्ञान प्राप्त हो सकता है। जो मोक्ष की ओर ले जाता है।

बुद्धिमान राजा


सालों पहले एक नगर में एक बुद्धिमान राजा राज्य करता था। उनकी बुद्धि और होशियारी की चर्चा दूर-दूर तक थी। राजा कभी भी बिना सोचे-समझे कुछ नहीं कहता और न ही किसी आरोपी की बात सुने बिना उसे सजा सुनाता था। उसकी बुद्धिमत्ता के चर्चे सुनकर आसपास के राजा, रानियां और राजकुमारी आदि उनसे जलते थे।

इसी जलन के चलते सभी उस राजा की बुद्धिमत्ता की परीक्षा लेने के लिए नए-नए तरीके अपनाते थे। हर बार राजा दूसरे राज्य के शासकों द्वारा ली गई परीक्षा में खरा उतर कर खुद को होशियार और योग्य राजा साबित करता था।

एक दिन राजा की परीक्षा लेने के लिए एक राजकुमारी आई। उसके हाथों में दो फूलों की माला थी। दोनों माला में से एक असली फूल से बनी थी और दूसरी नकली से। उन दोनों मालाओं को देखकर उनका ये भेद बिल्कुल पता नहीं चल पाता था। इसी वजह से राजकुमारी ने राजा के सामने दोनों मालाएं रखकर पूछा, ‘हे राजन! अगर आप बुद्धिमान हैं, तो बताइए कि इनमें से कौन-सी माला असली है।

राजदरबार में बैठे सभी दरबारी माला को देखकर हैरान थे, क्योंकि किसी को समझ नहीं आ रहा था कि असली फूलों की माला कौन-सी है। सभी इस सोच में थे कि राजा कैसे बता पाएंगे कि असली फूलों की माला कौन-सी है।

राजा भी माला को देखकर परेशान होने लगे। उसी वक्त उनके दिमाग में कुछ तरकीब आई। उन्होंने तुरंत अपने एक सेवक से कहा, ‘बगीचे की खिड़कियों को खोल दो।’ सेवक ने बगीचे की खिड़की को जैसे ही खोला, तो राजा ने देखा कि फूल में बैठी मधुमक्खियां खिड़कियों से राज दरबार में आ रही हैं। वो कुछ देर मधुमक्खियों को ही देखते रहे। जैसे ही एकात मधुमक्खी एक फूल की माला में बैठी, वैसे ही राजा ने कहा कि अब मैं बता सकता हूं कि असली माला कौन-सी है।

राजा ने तुरंत उस माला की तरफ इशारा किया, जिसपर मधुमक्खी बैठ रखी थी। राजा की होशियारी देखकर दरबार में मौजूद सभी उनकी तारीफ करने लगे। सभी कहने लगे कि हर राज्य को आपके जैसे ही बुद्धमान राजा की जरूरत है। 

राजकुमारी भी राजा के बुद्धिमत्ता देखकर खुश हो गई। उसने भी बुद्धिमान राजा की तारीफ में कुछ शब्द कहे और वहां से अपने राज्य की ओर निकल पड़ी।

Thursday, February 3, 2022

सृष्टि का नियम

एक तपस्वी ने वृक्ष की छाया में आराम किया और प्रस्थान के समय वृक्ष से वर मांगने का आग्रह किया। वृक्ष ने इच्छा व्यक्त की कि उसके वर्तमान पत्ते कभी उससे अलग न हों। ‘तथास्तु’ कहकर तपस्वी ने उससे विदा ली। बहुत समय बाद संयोगवश तपस्वी पुनः वहां से गुजर रहा था। उदास-निराश वृक्ष ने गुहार लगायी, ‘महात्मन! पूर्वकाल में दिया गया वर वापस ले लीजिए। उस समय मोहवश मैं यह भूल गया था कि परिवर्तन सृष्टि का सतत नियम है। इस नियम की अनदेखी करने के कारण मैं श्रीवृद्धि के लिए तरस रहा हूं। मैं जान गया हूं कि पुराना खोकर ही नया पाया जा सकता है।’