Tuesday, May 24, 2022

बंदर की क्रान्ति



प्रकृति विज्ञानियों ने जापान (Japan) के मैकॉक बंदरों (macaque monkey) का उनके प्राकृतिक परिवेश में कई तक अध्ययन किया। जापान के कोशिमा द्वीप (Koshima Island) पर प्रकृति विज्ञानियों ने बंदरों को खाने के लिए शकरकंद (Sweet potato) दिए जो रेत में गिर जाते थे। बंदरों को शकरकंद का स्वाद भा गया लेकिन रेत के कारण उनके मुंह में किरकिरी हो जाती थी।

‘माह की इमो’ नामक एक मादा बंदर ने इस समस्या का हल शकरकंद को समीप बहती स्वच्छ जलधारा में धोकर निकाल लिया। उसने यह तरकीब अपनी मां को भी सिखा दी। देखते-ही-देखते बहुत सारे बच्चे बंदर और उनकी मांएं पानी में धोकर शकरकंद खाने लगे। सभी वयस्क बंदर 10 से 12 माह में शकरकंद को पानी में धोकर खाने लायक बनाना सीख गए। तभी एक अनूठी घटना हुई। कोशिमा द्वीप के बहुत सारे बंदर वसंत महीने में शकरकंद को धोकर खा रहे थे। उनकी निश्‍चित संख्या का पता नहीं है। मान लें कि एक सुबह वहां 10 बंदर थे जिन्हें पानी में शकरकंद धोकर खाना आ गया था। अब यह भी मान लें कि अगली सुबह 11 वें बंदर ने भी पानी में धोकर शकरकंद खाना सीख लिया। इसके बाद तो चमत्कार हो गया। उस शाम तक द्वीप के सभी बंदर पानी में धोकर फल खाने लगे। उस 11 वें बंदर द्वारा उठाए गए कदम ने एक वैचारिक क्रांति को जन्म दे दिया था। यह चमत्कार यहीं पर नहीं रुका। समुद्र को लांघकर दूसरे द्वीपों तक जा पहुंचा। ताकासकियामा द्वीप के सारे बंदर अपने फल पानी में धोकर खाते देखे गए। अन्य द्वीपों के बंदर भी अपने फल धोकर खाने लगे।

इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि जब एक समूह के सदस्यों में निश्‍चित संख्या में जागरूकता आ जाती है तो वह जागरूकता चेतना के रहस्यमयी मानसिक स्तर पर फैल जाती है।

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