Wednesday, November 6, 2019

शास्त्रीजी की मानवता



बात उन दिनों की है जब लालबहादुर शास्त्री रेलमंत्री थे। मंत्री होने के बावजूद शास्त्रीजी सामान्य व्यक्तियों की भांति सहज व सरल स्वभाव के थे। अहंकार उन्हें रत्तीभर भी छू नहीं पाया था। दूसरों का दु:ख-दर्द देखकर वे तत्काल हरसंभव सहायता करने हेतु तत्पर रहते थे। एक बार उन्हें किसी सभा को संबोधित करने के लिए एक शहर में जाना था। सामान्यत: वे रेल से ही सफर करते थे और कार का उपयोग नहीं करते थे। उस दिन उन्हें किसी कारणवश काफी विलंब
हो गया था और साथ चल रहे एक अन्य मंत्री ने भी काफी आग्रह किया तो वे कार से सफर करने को तैयार हो गए। जब वे दोनों कार में बैठकर जा रहे थे तो रास्ते में अचानक एक स्थान पर कुछ लोगों ने कार को रोक लिया और उनमें से एक ने कहा, साहब, एक किसान की पत्नी को बच्चा होने वाला है। समय पर उसे अस्पताल नहीं पहुंचाया गया तो उसकी और बच्चे की जान को खतरा हो सकता है। आप अपनी कार से उसे शहर छोड़ दीजिए।

शास्त्रीजी तुरंत कार से उतरे और बोले, उस महिला को ले आओ, मैं कार से उसे शहर के अस्पताल पहुंचा दूंगा। यह सुनकर सहयोगी मंत्री ने कहा, आप यह क्या कर रहे हैं? हमें वैसे ही काफी विलंब हो चुका है।

शास्त्रीजी शांति से बोले, ‘मान्यवर! यदि मैं सभा में नहीं जाऊंगा तो अनर्थ नहीं होगा। यदि मैंने उस महिला को समय पर अस्पताल नहीं पहुंचाया तो दो जीवन संकट में पड़ जाएंगे। जीवन बेशकीमती है।’ चाहे कैसे भी हालात हों, हर कीमत पर उसे बचाने की कोशिश करना ही सच्चा मानव धर्म है।

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