Saturday, November 2, 2019

सबसे बड़ा धर्म


हीरे-जवाहरात के  एक बड़े व्यापारी थे - देवीदीन। व्यापार में वह किसी प्रकार की अनीति नहीं करते थे। वह दूसरे व्यापारियों के हितों का भी ध्यान रखते थे। एक बार उन्होंने किसी व्यापारी से जवाहरात खरीदने का सौदा किया। भाव तय हो गया और यह भी निर्धारित हो गया कि अमुक समय के भीतर वह व्यापारी देवीदीन को जवाहरात दे देगा। दस्तावेज पर दोनों पक्षों के हस्ताक्षर हो गए।संयोग से इस अवधि में जवाहरात का भाव बढ़ गया। इस भाव पर यदि वह माल देता तो उसे भारी हानि हो जाने की आशंका थी। बेचारा व्यापारी संकट में पड़ गया, पर उसे अपना वचन तो निभाना ही था। देवीदीन को मूल्य बढ़ जाने की बात मालूम हुई तो वह उस व्यापारी की दुकान पर गए। देवीदीन कुछ कहें, उससे पहले ही व्यापारी ने कहा, ’सेठ जी, विश्‍वास रखिए, मैं अपने वादे को हर हाल में पूरा कर दूंगा। आप चिंता न करें।’देवीदीन ने कहा,’ मैं जानता हूं कि आप अपने वादे को हर हालत में पूरा कर देंगे, लेकिन मैं यह भी जानता हूं कि आप बेहद चिंतित हैं। देखिए, हमारी चिंता का मुख्य कारण वह दस्तावेज है, जिस पर हमारे हस्ताक्षर हैं। यदि दस्तावेज को नष्ट कर दिया जाए तो चिंता का अपने आप अंत हो जाएगा।’ व्यापारी ने कहा, ’नहीं, नहीं, सेठ जी ऐसा करने की जरूरत नहीं है, मुझे केवल दो दिन का समय दीजिए।’ 

देवीदीन ने दस्तावेज निकाला और उसे टुकड़े-टुकड़े कर फेंकते हुए बोले, ’यह करार हमारे हाथ-पैर बांधता था। इस सौदे में भाव बढ़ जाने से मेरे साठ-सत्तर हजार रुपए आपकी ओर निकलते। आपकी स्थिति मैं जानता हूं। आप कहां से देंगे इतनी बड़ी राशि?’आड़े समय में एक-दूसरे की सहायता करना मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म है।’

No comments:

Post a Comment