एक बार एक महिला महाराष्ट्र के महान संत ज्ञानेश्वर महाराज से मिलने उनके आश्रम में गई। संध्या का समय था और संत ज्ञानेश्वर भोजन कर रहे थे। उस समय महिला ने बाहर बैठकर प्रतिक्षा करना उचित समझा। महिला के साथ उसका पुत्र भी था। महिला ने अपने पुत्र से कहा कि ’महाराज अभी भोजन कर रहे हैं इसलिए हमको अभी प्रतिक्षा करना पड़ेगी। इसके बाद ही वह हमारी समस्या का समाधान करेंगे।’
कुछ देर पश्चात एक महिला कुटिया से बाहर आई और कहा कि ’आप दोनों को महाराज ने अंदर बुलाया है।’ महिला अपने पुत्र को लेकर अंदर गई और उसने संत से कहा कि ’महाराज इसको अपच की समस्या है। मैने इसको कई दवाइयां दी, लेकिन कोई असर नहीं हुआ।’ ज्ञानेश्वर महाराज ने महिला से कहा कि ’बहन इसको कल लेकर आना।’
दूसरे दिन जब महिला अपने पुत्र को लेकर महाराज के पास गई तो संत ज्ञानेश्वर ने बच्चे से पूछा कि ’तू गुड़ ज्यादा खाता है क्या?’ बच्चे ने इसका जवाब हां में दिया, तब संत ज्ञानेश्वर ने बच्चे से कहा कि ’तू गुड़ खाना बंद कर दे जल्दी ठीक हो जाएगा।’ बच्चे ने भी ज्ञानेश्वर महाराज की बात मान ली। महिला अब यह सोंचने लगी कि यह बात महाराज ने कल क्यों नहीं बता दी। इतनी छोटी सी बात के लिए बेमतलब दो बार चक्कर दिया। महिला से रहा नहीं गया और उसने ज्ञानेश्वर महाराज से पूछ लिया। कि ’यह बात तो आप कल भी बता सकते थे?’
संत ज्ञानेश्वर ने कहा कि ’बहन जब आप कल बच्चे को लेकर आई थी तब मेरे सामने गुड़ ही रखा था। ऐसे में मैं उसको गुड़ खाने के लिए मना कैसे कर सकता था? वह यही सोंचता की खुद तो गुड़ खाते हैं, लेकिन मुझे खाने के लिये मना कर रहे हैं, लेकिन आज मैं इस स्थिति में हूं कि उसको गुड़ खाने के लिए मना कर सकता हूं।’ इतना सुनते ही उस स्त्री ने संत ज्ञानेश्वर के पैर छूए और उनका आभार व्यक्त कर चली गई।
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