Friday, March 4, 2016

अपने लाभ से बाहर


एक व्यक्ति पशु-पक्षियों का व्यापार किया करता था। एक दिन उसे पता चला कि उसके गुरु पशु-पक्षियों की बोली समझते हैं। उस व्यक्ति ने सोचा कि यदि उसे भी यह विद्या मिल जाए तो उसके लिए लाभकर हो सकती है। यह सोचकर वह अपने गुरु के पास गया। उनकी खूब सेवा की और उनसे पशु-पक्षियों की बोली सिखाने का आग्रह किया। गुरु ने उसे यह विद्या सिखा दी। पर यह भी चेतावनी दी कि वह अधिक लोभ न करे और अपने लाभ के लिए किसी की हानि न करे। घर लौटने पर शिष्य ने अपने दो कबूतरों को बात करते सुना कि उसके घोड़े को कोई अंदरूनी बीमारी हो गई है, वह एक-दो दिन में मर जाएगा। 

फिर क्या था, उसने तत्काल अपने घोड़े को अच्छे दाम पर बेच दिया। पता चला कि वास्तव में एक-दो दिन बाद घोड़ा मर गया। उसे यकीन हो गया कि पशु-पक्षी एक-दूसरे के बारे में अच्छी तरह जानते हैं। एक दिन उसने अपने कुत्ते को कहते सुना कि उसकी सारी मुर्गियां महामारी से मरने वाली हैं। वह तुरंत सारी मुर्गियां बाजार में बेच आया। उसे प्रसन्नता हुई कि वह नुकसान से बच गया। कुछ दिनों बाद उसने अपनी बिल्ली को कहते सुना कि उनका मालिक कुछ ही दिनों का मेहमान है। उसे विश्‍वास नहीं हुआ। लेकिन जब उसके गधे ने भी यही बात दोहराई तो वह घबरा गया। 

वह भागा हुआ अपने गुरु के पास पहुंचा और बोला, ’गुरुदेव मेरा अंत समय निकट है। कृपया मुझे अंतिम घड़ी में स्मरण योग्य कोई काम बताएं, जिससे मेरी मुक्ति हो जाए।’ गुरु ने कहा, ’अगर मरने वाले हो, तो जाओ अपने आपको भी किसी को बेच डालो। अरे मूर्ख, सिद्धियां कभी किसी की गुलाम नहीं हुई हैं। इसीलिए मैंने तुझसे पहले ही कहा था कि अपने लाभ और किसी की हानि के लिए इसका प्रयोग मत करना।’

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