Saturday, May 2, 2015

संत का स्वभाव


सगाल के एक मशहूर आर्ट कॉलेज में एक अमीर छात्र ने दाखिला लिया। वह रहन-सहन में बेहद लापरवाह था। हॉस्टल में उसका कमरा हमेशा गंदा रहता था। सारी चीजें इधर-उधर बिखरी रहती थीं। उसकी शिकायत प्रिंसिपल तक पहुंची लेकिन कोई हल नहीं निकला। एक दिन वह सोकर उठा तो उसे अपना कमरा साफ-सुथरा मिला। सारी चीजें करीने से रखी हुई थीं। उसे लगा कि यह काम जरूर हॉस्टल के नौकर का होगा। इनाम पाने के लालच में ही उसने ऐसा किया होगा। दो-तीन दिनों में कमरा पहले जैसा हो गया।  चौथे दिन फिर उसके कमरे की सफाई हो गई थी। उस छात्र ने फिर सोचा कि यह काम नौकर का ही होगा। रात को वह चुपके से आता होगा और सफाई करके चला जाता होगा। दूसरे दिन उसने नौकर को बुलाया और कुछ पैसे देते हुए कहा, ’लो अपना इनाम।’ नौकर हैरत में पड़ गया। उसने कहा, ’इनाम किसलिए?’ छात्र बोला, ’इसलिए कि तुम रोज मेरे कमरे की सफाई करते हो।’ इस पर नौकर ने कहा, ’मैं तो कभी आप के कमरे गया भी नहीं साहब। सफाई कैसे करूंगा?’ नौकर इनाम लिए बगैर चला गया।

छात्र असमंजस में पड़ गया। इस रहस्य को जानने के लिए एक रात वह सोने का बहाना कर चुपचाप लेटा रहा। आधी रात को कोई उसके कमरे में आया और बिखरी हुई सारी चीजों को व्यवस्थित करने लगा। उस शख्स को देखते ही छात्र सन्न रह गया। वह उसके प्रिंसिपल थे। छात्र उनके पैरों पर गिर गया और माफी मांगने लगा। प्रिंसिपल ने कहा, ’तुम यहां कलाकार बनने आए थे। कलाकार तो नहीं बन सकते लेकिन मैं चाहता हूं कि तुम कम से कम एक अच्छे इंसान बन कर यहां से जाओ। फूहड़पन में कला का वास नहीं होता। कला के लिए तो निर्मल मन और सौंदर्य दृष्टि चाहिए, जो तुम्हारे अंदर नहीं है।’  वह प्रिंसिपल थे विख्यात कलाकार नंदलाल बसु। 

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