Thursday, January 16, 2020

जीवन का रहस्य


महर्षि याज्ञवल्क्य के पास राजा जनक बैठे हुए थे। दोनों में धर्मचर्चा चल रही थी। राजा जनक ने महर्षि से पूछा कि ’ऋषिराज मेरे मन मैं एक शंका है कृपया उसका निवारण करे। हम जो देखते हैं, वह किसकी ज्योति से देखते हैं?’
महर्षि ने जवाब दिया कि ’यह क्या बच्चों जैसी बात करते हैं आप? सभी जानते हैं कि हम जो कुछ भी देखते हैं वह सूर्य की ज्योति की वजह से देखते हैं्।’ 
राजा जनक ने पुन: प्रश्न किया कि ’जब सूर्य अस्त हो जाता है तब हम किसके प्रकाश से देखते हैं?’ महर्षि ने उत्तर दिया की ’उस समय हम चंद्रमा के प्रकाश से देखते हैं्।’
जनक ने अगला प्रश्न किया कि ’ जब सूर्य न हो, चंद्र न हो, तारों से भरी रात न हो, अमावस्या का अंधकार हो, तब हम किसके प्रकाश से देखते हैं?’
महर्षि ने जवाब दिया, ’तब हम शब्दों की ज्योति से देखते हैं्। कल्पना करें - विस्तृत वन है, घना अंधेरा है, एक पथिक रास्ता भूल गया है, वह आवाज देता है, मुझे रास्ता दिखाओ्। तभी दूर खड़ा एक व्यक्ति कहता है कि इधर आओ, मैं तुमको रास्ता दिखाता हूं्। इस तरह से पहला शब्द प्रकाश व्यक्ति तक पहुंच जाता है?
जनक ने फिर से प्रश्न किया कि महर्षि! ’जब शब्द भी नहीं हो तब हम किस ज्योति से देखते हैं?’ महर्षि ने जवाब दिया, ’उस समय हम आत्मा की ज्योति से देखते हैं और उसी ज्योति से सारे काम करते हैं्।’
राजा जनक ने प्रश्न किया ’महर्षि यह आत्मा क्या है?’ महर्षि ने उत्तर दिया, योयं विज्ञानमये : प्राणेशु ह्नद्यज्योर्ति: पुरूष: । अर्थात जो विशेष ज्ञान से भरपूर है, जीवन और ज्योति से भरपूर है, जो ह्रदय में विद्यमान है, अंत:करण की ज्योति में और सारे शरीर में विद्यमान है, वही आत्मा है। जब कहीं कुछ दिखाई नहीं देता है तब आत्मा की ज्योति ही जीवन-जगत को प्रकाशित करती है। 

समस्या का समाधान


एक बार एक महिला महाराष्ट्र के महान संत ज्ञानेश्वर महाराज से मिलने उनके आश्रम में गई। संध्या का समय था और संत ज्ञानेश्वर भोजन कर रहे थे। उस समय महिला ने बाहर बैठकर प्रतिक्षा करना उचित समझा। महिला के साथ उसका पुत्र भी था। महिला ने अपने पुत्र से कहा कि ’महाराज अभी भोजन कर रहे हैं इसलिए हमको अभी प्रतिक्षा करना पड़ेगी। इसके बाद ही वह हमारी समस्या का समाधान करेंगे।’
कुछ देर पश्चात एक महिला कुटिया से बाहर आई और कहा कि ’आप दोनों को महाराज ने अंदर बुलाया है।’ महिला अपने पुत्र को लेकर अंदर गई और उसने संत से कहा कि ’महाराज इसको अपच की समस्या है। मैने इसको कई दवाइयां दी, लेकिन कोई असर नहीं हुआ।’ ज्ञानेश्वर महाराज ने महिला से कहा कि ’बहन इसको कल लेकर आना।’
दूसरे दिन जब महिला अपने पुत्र को लेकर महाराज के पास गई तो संत ज्ञानेश्वर ने बच्चे से पूछा कि ’तू गुड़ ज्यादा खाता है क्या?’ बच्चे ने इसका जवाब हां में दिया, तब संत ज्ञानेश्वर ने बच्चे से कहा कि ’तू गुड़ खाना बंद कर दे जल्दी ठीक हो जाएगा।’ बच्चे ने भी ज्ञानेश्वर महाराज की बात मान ली। महिला अब यह सोंचने लगी कि यह बात महाराज ने कल क्यों नहीं बता दी। इतनी छोटी सी बात के लिए बेमतलब दो बार चक्कर दिया। महिला से रहा नहीं गया और उसने ज्ञानेश्वर महाराज से पूछ लिया। कि ’यह बात तो आप कल भी बता सकते थे?’ 
संत ज्ञानेश्वर ने कहा कि ’बहन जब आप कल बच्चे को लेकर आई थी तब मेरे सामने गुड़ ही रखा था। ऐसे में मैं उसको गुड़ खाने के लिए मना कैसे कर सकता था? वह यही सोंचता की खुद तो गुड़ खाते हैं, लेकिन मुझे खाने के लिये मना कर रहे हैं, लेकिन आज मैं इस स्थिति में हूं कि उसको गुड़ खाने के लिए मना कर सकता हूं।’ इतना सुनते ही उस स्त्री ने संत ज्ञानेश्वर के पैर छूए और उनका आभार व्यक्त कर चली गई।